चीनी के मीठे ज़ायके के बिना इंसान का जीवन ही फीका हो जाएगा. इसमें न कोई विटामिन मिलता है और न ही कोई खास मिनरल, बावजूद इसके चीनी की मिठास में हर कोई जकड़ा हुआ है.
आजकल चीनी हर कोई खरीद सकता है लेकिन चीनी को एक वक्त में सफेद सोना कहा जाता था. सफेद दानेदार चीनी को गन्ने और चुकंदर से बनाया जा सकता है. एक समय में चीनी इतनी महंगी थी कि सिर्फ व्यवसायी और राजा-महाराजा ही इसे अफोर्ड कर सकते थे.
गन्ने से शक्कर बनाने की प्रक्रिया का आविष्कार ही भारत में हुआ था और ईसा पूर्व सातवीं सदी में लिखे गए आयुर्वेदिन ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में इसकी जानकारी दी गई है. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी गुड़-खांड समेत 5 तरह की शक्कर का ज़िक्र है. दुनिया में इसके पुराना शक्कर बनाने का दूसरा विवरण नहीं है.
भारत से ही चीनी दुनिया के दूसरे देशों तक पहुंची. भारत में तो इसका वर्णन शक्कर और शर्करा के रूप में रहा, फिर ये चीन से इसका क्या मतलब?
दरअसल भारत में इस्तेमाल होती थी- शक्कर, जो चीनी से अलग है. गन्ने के रस को गर्म करके इसे सुखाकर शक्कर बनती थी. उजली- पारदर्शी और दानेदार चीनी का चीन से गहरा वास्ता है. 13वीं सदी में इतालवी व्यापारी, खोजकर्ता और राजदूत मार्को पोलो के संस्मरणों में बताया गया है कि चीन के बादशाह कुबलई खां ने मिस्र से कारीगर बुलवाए थे, जिन्होंने चीन के लोगों को दानेदार शक्कर बनाना सिखाया.
चूंकि इस तकनीक को चीन से मुगलकाल में भारत लाया गया, इसलिए इस प्रक्रिया से बनी शक्कर को चीनी कहा गया. ये नाम सफेद शक्कर के लिए इतना लोकप्रिय हुआ कि सफेद-दानेदार चीनी घर-घर में पहुंच गई. भारत में पहली चीनी मिलों को लगाने का रिकॉर्ड 1610 में मिलता है.
चीनी भले ही कुछ ज्यादा विटामिन-मिनरल न रखती हो, लेकिन इसका उपयोग डायरिया, उल्टी, बुखार-खांसी में होता रहा है. इतना ही नहीं घावों और ज़ख्मों को भरने के लिए यूरोप में इस्तेमाल होती रही है. बस ये याद रखिए, चीनी थोड़ी खाई जाए तो स्वाद देती है और ज्यादा खाई जाए तो बीमारियों की खान है. (All Photos Credit- Canva)
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